शिक्षा में समुदाय की भागीदारी को हम अभिभावक-शिक्षक संबंध के रूप में देख सकते हैं। थोड़ा विचार करने पर हम पाएंगें कि अभिभावक शिक्षक संबंध से हीं समुदाय की समुचित भागीदारी सुनिश्चित हो सकती है। समुदाय की भागीदारी में सामूहिकता का भाव प्रकट होता है जोकि अभिभावक शिक्षक संबंध में मुखरता के साथ नहीं उभरता है। प्रत्येक अभिभावक जब अपने बच्चे को लेकर शिक्षक से संबंध रखता है तो किसी स्कूल में अभिभावकों के समुदाय की भागीदारी हो रही होती है। इस दौरान संवाद की शुरूआत भले ही किसी खास बच्चे के संबंध में होती हैं, परन्तु स्कूल की पूरी शिक्षा व्यवस्था का चर्चा में आना स्वभाविक हो जाता है। अतः एक संभावना बनी रहती है कि अभिभावकों की व्यक्तिगत सरोकार सामूहिक सरोकार बने। स्कूल में अभिभावकों की बहुलता वाली विद्यालय प्रबंध समिति होने से ऐसा हो पाना और भी संभव हो जाता है।
शिक्षा में समुदाय की भागीदारी को समझने के लिए एक विपरीत सवाल पूछ कर विचार किया जा सकता है। यदि प्रत्येक बच्चे को लेकर अभिभावक-शिक्षक संबंध नहीं है तो क्या विद्यालय प्रबंध समिति प्रत्येक बच्चे के सीखने के हक को सुनिश्चित करा सकती है। शिक्षा के हक को हम बच्चों के सीखने के हक के रूप में देखते हैं तो हमें अपना सरोकार और स्पष्ट हो जाता है। शिक्षा का अधिकार कानून प्रत्येक बच्चे के नैसर्गिक क्षमताओं के अधिकतम विकास की बात करता है, जिसमें संवैधानिक मूल्यों को भी बढ़ावा मिलता हो।
प्रत्येक बच्चे का वैसा विकास हो पाए, इसके लिए शिक्षक और अभिभावक का साझा प्रयास जरूरी है। बच्चे की रूचियों, मजबूतियों, जिज्ञासाओं, उलझनों, सीखने के अनुभवों, विभिन्न परिस्थितियों में उनके व्यवहार को जानने समझने से बच्चे को उसके अनुसार अवसर व सहयोग दिया जा सकता है। शिक्षक और अभिभावक मिलकर बच्चे को बेहतर तरीके से समझ सकते हैं और उसके अनुसार समन्वित प्रयास कर सकते हैं।
प्रत्येक बच्चा अपने आप में अनोखा होता है। हम सभी बच्चों को एक जैसा नहीं मान सकते हैं। अभिभावकों के माध्यम से शिक्षक बच्चों की दिनचर्या, खानपान, खेल गतिविधियों और बच्चे के अन्य विशेष अनुभवों के बारे में जान सकते हैं। बच्चों के इन अनुभवों को जान कर शिक्षक कक्षा शिक्षण में इनके उदाहरण लेकर शिक्षण प्रक्रिया को बच्चों के पूर्व ज्ञान और संदर्भ से जोड़ सकते हैं। इससे बच्चों का सीखना समझना काफी सुगम हो जाता है। यदि शिक्षण के दौरान बच्चों के संदर्भ से बाहर की बातें होती हैं तो बच्चों को समझ में नहीं आ पाता है। इसका दुष्परिणाम होता है कि शिक्षक बच्चों के बारे में गलत धारणा बना लेते हैं, जैसे बच्चा सीखना नहीं चाहता है, उसकी सीखने की क्षमता कम है।
शिक्षक, अभिभावकों को, घर पर, बच्चों के सीखने को बढ़ाना देने के तरीकों से अवगत करा सकते हैं। इस प्रकार बच्चे को स्कूल के साथ-साथ घर में भी उपयुक्त अवसर मिल सकता है और बच्चे के विकास को बढ़ावा मिलने की संभावना अधिक होगी।
शिक्षक और अभिभावक संबंध से बच्चे को भी अच्छा लगता है। बच्चे का आत्मबल बढ़ता है और उसके नियमित स्कूल आने की संभावना बढ़ जाती है।
कानून भी अपेक्षा करता है कि शिक्षक अभिभावकों को बच्चे की सीख में प्रगति से अवगत कराएं। कानून शिक्षक से बच्चों के सत्त आंकलन की अपेक्षा करता है। इन सब के पीछे मूल मंशा बच्चे की सीखने की जरूरत को समझना है। यह काम अकेले शिक्षक या अभिभावक बेहतर तरीके से नहीं कर सकते हैं।
स्कूल में समुचित अभिभावक शिक्षक संबंध नहीं होने पर कई तरह की परेशानियां होती हैं। सभी बच्चों को नियमित स्कूल आना अच्छा लगे, बच्चों को सीखने का रोचक माहौल मिले, ऐसा सभी शिक्षक और अभिभावक चाहते हैं। परन्तु कई कारणों से ऐसा नहीं हो पाने के कारण निराश होकर एक-दूसरे पर दोषारोपण करते हैं। स्कूल में कई दिक्कतें शिक्षा तंत्र से समुचित मार्गदर्शन व संसाधन नहीं मिलने से पैदा होती हैं। शिक्षा तंत्र की तमाम सीमाओं के बीच अभिभावक व शिक्षक अपने साझा प्रयासों से बच्चों के सीखने को बढ़ावा दे सकते हैं।
अभिभावक शिक्षक संबंध को बढ़ावा देने के लिए विद्यालय प्रबंध समिति अपनी मासिक बैठक के अलावा दो तरह के प्रयास कर सकती है। कक्षावार अभिभावक शिक्षक बैठक और सभी अभिभावकों की सभा। कक्षावार अभिभावक शिक्षक बैठक में प्रत्येक बच्चे को लेकर विस्तार से बात हो सकती है। इसे साल में तीन-चार बार किया जा सकता है। सभी अभिभावकों की सभा साल में एक दो बार आयोजित कर सामूहिक मुद्दों पर चर्चा हो सकती है। सभा में स्कूल बाहर व अनियमित बच्चों के माता-पिता के साथ स्कूल बाहर बच्चों को भी शामिल किया जाना बेहतर होगा। इस प्रकार सभी बच्चों को शिक्षा का हक मिल पाना सभी की सामूहिक समझ व जिम्मेदारी से सुनिश्चित हो पायेगा। 15 अगस्त और 26 जनवरी को ऐसी बैठक करना काफी संभव है।
बालमंच के माध्यम से अभिभावक शिक्षक संबंध की जरूरत से शिक्षकों और अभिभावकों को संवेदित किया जा सकता है। बच्चे इसे नाटक के माध्यम से प्रस्तूत कर सकते हैं। जैसे कि फिल्म ‘तारे जमीन पर’ के उस अंश जैसा दिखाना जिसमें आमिर खान बच्चे के घर जाकर बच्चे को समझने का प्रयास करते हैं।
स्कूल को बेहतर करने के प्रयास में शिक्षक और समिति को कई तरह के बाहरी अड़चनों को सामना करना पड़ता है। जैसे कि पर्याप्त शिक्षक का न होना। कमरे का जर्जर हो जाना। अतः जमीनी प्रयास से स्कूल का विकास हो, इसके लिए शिक्षा तंत्र से समुचित सहयोग लेने की जरूरत है। इसके लिए अभिभावक-शिक्षक मिल कर प्रयास करें तो यह ज्यादा प्रभावी होगा। विद्यालय प्रबंध समिति और अभिभावक सरकार से मांग कर सकते हैं जिससे कि शिक्षकोें को बेहतर शिक्षण कार्य कर पाने के लिए अनुकूल अवसर मिले। विद्यालय प्रबंध समिति और शिक्षक मिलकर विकासखंड स्तर पर शिक्षा संवाद आयोजित कर सकते हैं जिसमें जनप्रतिनिधियों व अधिकारियों को आमंत्रित कर अपने सुझावों से उन्हें अवगत करा सकते हैं।
वर्तमान समय में शिक्षा व्यवस्था काफी केन्द्रीकृत है। इस व्यवस्था में शिक्षक जिस तरह से निर्देशित और नियंत्रित होते हैं, उससे उनका मनोबल कम हो जाता है। बाल केन्द्रित शिक्षा की संभावना भी धूमिल हो जाती है। सरकारी स्कूलों में अधिकांश अभिभावक वंचित समुदाय से हैं। केन्द्रित व्यवस्था में स्थानीय संदर्भ, वंचितों की दुनिया और उनके ज्ञान को स्कूली शिक्षा में कम स्थान मिल पाता है। अतः शिक्षा का विकेन्द्रीकरण होने की जरूरत है जिसमें वंचित अभिभावकों और शिक्षकों को सामूहिक पहल करने के अवसर हों।
बच्चों की शिक्षा में अभिभावकों और शिक्षक का सरोकार सबसे ज्यादा और गहरा है। उनके साझा प्रयासों से ही बच्चों का सीखने और शिक्षा व्यवस्था में बदलाव संभव हो पायेगा। सरकार और स्वैच्छिक संस्थाओं को ऐसा प्रयास करना चाहिए कि अभिभावक-शिक्षक साझा प्रयास को बढ़ावा मिले। अभिभावक शिक्षकों को साझा प्रयास के लिए तैयार कर सकें, इसके लिए समिति सदस्यों की क्षमतावृद्धि और सबलीकरण काफी जरूरी है। अभिभावक सदस्यों का संकुल और ब्लाक पर आपस में सीखने का मौका देना इस दिशा में काफी सहायक है। सरकार व स्वैच्छिक संगठन शिक्षकों को भी इस संदर्भ में संवेदित कर सकती हैं। राजेश कुमार